कोविड से उबरने के बाद आंखों की रोशनी पर ध्यान देना जरूरी, बरतें ये सावधानियां

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छत्तीसगढ़ रिपोर्टर

सार्स-कोव-2 वायरस आंखों का नूर भी छीन सकता है। भारत में कोविड-19 से उबरने वाले कई मरीजों ने नजर कमजोर पड़ने की शिकायत की है। ऐसे में विशेषज्ञ ठीक होने के एक से तीन महीने के भीतर रोशनी पर खास ध्यान देने की सलाह देते हैं। उनके मुताबिक आंखों के सामने धुंधलापन छाने की समस्या को भी हल्के में नहीं लेना चाहिए। धूप या तेज रोशनी में आंखें चौंधियाने और बल्ब के किनारे प्रकाश के घेरे दिखने पर भी फौरन डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

मोतियाबिंद से मिलते-जुलते लक्षण उभर रहे
एम्स के डॉ. हरजीत सिंह भट्टी कहते हैं, कोरोना को मात देने वाले कई मरीज आंखों को नुकसान पहुंचने की शिकायत लेकर आ रहे हैं। कई संक्रमितों में तो मोतियाबिंद से मिलते-जुलते लक्षण पनप रहे हैं। इनमें आंखों के सामने काले धब्बे छाना, तेज प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता, एक ही वस्तु के दो-दो चित्र नजर आना और रंग धुंधले दिखना प्रमुख है।

क्या हैं वजहें
1.मांसपेशियां कमजोर होना

-कोरोना संक्रमण से उबरने वाले ज्यादातर मरीज हल्के-फुल्के काम निपटाने में भी थकान महसूस होने की शिकायत करते हैं। इसका मतलब यह है कि उनकी मांसपेशियों को पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा नहीं मिल पा रही है, जिससे वे कमजोर पड़ गई हैं। हाथ-पैर की तरह आंखों की मांसपेशियों पर भी यह बात लागू होती है। ऐसे में मरीज नजर धुंधलाने की शिकायत से जूझने लगता है। हालांकि, खानपान पर ध्यान देने और पुरानी ताकत वापस पाने पर यह दिक्कत खुद बखुद दूर हो जाती है।

2.खून के थक्के जमना
मई 2020 में छपे कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अध्ययन में कोविड-19 और ‘थ्रम्बोसिस’ के बीच गहरा संबंध पाया गया था। ‘थ्रम्बोसिस’ वह चिकित्सकीय अवस्था है, जिसमें नसों में खून के थक्के जमने से रक्तप्रवाह बाधित होने लगता है। विशेषज्ञों के मुताबिक कुछ धमनियां इतनी चौड़ी होती हैं कि थक्के खून के साथ बहते जाते हैं। पर आंखों के मामले में ऐसा नहीं होता। रेटिना में रक्तप्रवाह रुकने और ऑक्सीजन की आपूर्ति ठप पड़ने से कोशिकाओं के दम तोड़ने की शिकायत उभर सकती है।

हल्के में लेने पर दृष्टिहीनता का खतरा
डॉ. भट्टी के मुताबिक आंखों की मांसपेशियां कमजोर पड़ना युवाओं के लिए उतना चिंताजनक नहीं है। खानपान और दिनचर्या पर ध्यान देकर वे आंखों से जुड़ी दिक्कतों पर पार पा सकते हैं। हां, बुजुर्गों के लिए यह फिक्र का सबब है, क्योंकि ढलती उम्र में मांसपेशियों और कोशिकाओं की मरम्मत की प्रक्रिया बेहद धीमी हो जाती है। वहीं, ‘थ्रम्बोसिस’ की बात करें तो लापरवाही बरतने पर यह दृष्टिहीनता का सबब बन सकता है। इसकी वजह खून के थक्के के लंबे समय तक बने रहने से रेटिना की कोशिकाओं का नष्ट होना है।

समय रहते चिकित्सकीय मदद लेना अहम
कर्नाटक ऑप्थैल्मिक सोसायटी के डॉ. राजशेखर की मानें तो ‘थ्रम्बोसिस’ लाइलाज नहीं है। बशर्ते मरीज समय रहते आंखों के सामने पेश आने वाली दिक्कतों को पहचानें और उचित चिकित्सकीय सलाह लें। 

देर न हो जाए
-04 से 06 घंटे के भीतर इलाज न होने पर रेटिना को नुकसान पहुंचा सकता है खून का थक्का।
-24 घंटे या उससे अधिक समय तक नजरअंदाज करने पर दृष्टिहीनता का सबब बन सकता है।

इलाज के उपाय
1.डॉक्टर ज्यादातर मामलों में खून को पतला करने वाली दवाओं से ही थक्के पिघलाते हैं।
2.एमआरआई में थक्का बड़ा दिखने पर उसे हटाने को सर्जरी का सहारा लेना पड़ सकता है।

ये सावधानियां बरतें
-कोविड-19 से उबरने के कुछ दिन बाद आंखों की जांच करवाएं, चश्मे का नंबर तेजी से घटने पर डॉक्टर से संपर्क करें।
-आंखों के सामने धुंधलापन छाने, नजर कमजोर पड़ने, तेज रोशनी के प्रति संवेदनशीलता जैसी दिक्कतों को हल्के में न लें।
-विटामिन-ए, ओमेगा-3 फैटी एसिड, ल्युटिन से भरपूर खाद्य सामग्री, मसलन हरी पत्तेदार सब्जियों, पीले फलों, गाजर, अंडे, दूध का सेवन बढ़ाएं।

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