छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
जम्मू कश्मीर 29 दिसंबर 2023। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 पर फैसला देने वाली संविधान पीठ में शामिल रहे जस्टिस (रिटायर्ड) एसके कौल ने अपने एक बयान में कहा है कि वह संविधान पीठ में शामिल पांच जजों का फैसला था और लोग का मत उससे अलग हो सकता है। जस्टिस कौल ने कहा कि ‘मेरा मानना है कि अगर पांच जजों ने एकमत होकर फैसला लिया है तो यह इन पांच जजों का फैसला है जो कानून के मुताबिक लिया गया है। फैसले पर बात करते हुए जस्टिस किशन कौल ने कहा कि ‘जब अनुच्छेद 370 का मामला पीठ के सामने आया तो उनके सामने दो सवाल थे- पहला कि अनुच्छेद 370 क्या अस्थायी प्रावधान था दूसरा क्या केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाने के लिए सही कानूनी प्रक्रिया का पालन किया है या नहीं।’ जस्टिस कौल ने कहा कि ‘सही कानूनी प्रक्रिया का पालन हुआ। जहां तक प्रक्रिया की बात है तो जिस वक्त अनुच्छेद 370 हटाया गया, उस वक्त राज्यों में कोई विधानसभा नहीं थी और केंद्र सरकार के पास शक्तियां थी। लोगों का इस पर भिन्न मत हो सकता है, तो कोई बात नहीं।’
कश्मीरी पंडितों को जो कश्मीर में झेलना पड़ा, उस पर जस्टिस कौल ने कहा कि यह जरूरी है कि इस बात को स्वीकार किया जाए कि कुछ गलत हुआ था। दक्षिण अफ्रीकी मॉडल का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यह बदले के लिए नहीं है लेकिन उन गलत चीजों को स्वीकार करने के बारे में और माफी मांगने के बारे में है। उन्होंने कहा कि अब लोगों को इसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में अनुच्छेद 370 को माना था अस्थायी प्रावधान
बता दें कि इस महीने सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के सरकार के फैसले को बरकरार रखा था और संवैधानिक तौर पर इसे सही ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अनुच्छेद 370 का प्रावधान अस्थायी था और इसे हटाया जाना वैध है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कई राजनेताओं ने नाराजगी जाहिर की थी। अब इस फैसले पर जस्टिस एसके कौल ने एक मीडिया चैनल से बात करते हुए इस फैसले पर प्रतिक्रिया दी। जस्टिस कौल बीती 25 दिसंबर को रिटायर हो चुके हैं।
जम्मू कश्मीर के अनुच्छेद 370 पर फैसला देने वाली संविधान पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस (अब रिटायर) एसके कौल, और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे। सभी जजों ने अपने फैसले अलग-अलग लिखे थे। बाकी जजों ने फैसले के कानूनी पहलू पर गौर किया था, वहीं जस्टिस एसके कौल ने इस फैसले के मानवीय पहलू पर टिप्पणी की थी। बता दें कि जस्टिस कौल खुद भी कश्मीरी पंडित हैं और उन्होंने खुद भी विस्थापन का दर्द झेला है।