छत्तीसगढ़ के कलाकारों ने दी नृत्य- संगीत की अभिनव प्रस्तुति

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छत्तीसगढ़ रिपोर्टर

बिलासपुर 24 दिसंबर 2024। श्री काल मंजरी कथक संस्थान के तत्वावधान में सिक्स ऑडिटोरियम में महफिल शाम-ए-रक्स का आयोजन किया गया। इसमें कथक की मुजरा शैली की प्रस्तुति हुई। इस कार्यक्रम में 33 कलाकारों ने अपनी मोहक प्रस्तुति दी। गीत और गजल पर आधारित नृत्य संयोजन का मुख्य आधार 19वीं शताब्दी में लखनऊ-अवध की परंपरा का संयोजन था जिसमें मुख्य रूप से गीत, ग़ज़ल, शेर, ध्रुपद राग, कव्वाली के साथ नृत्य को जानने का एक सुंदरतम नवीन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया। कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज द्वारा रचित शान- ए-अवध से प्रेरित था जिसके मूल में जन साधारण संगीत रचना के आधार पर आधिकाधिक लोग इस संगीत रचना से जुड़ पाए। साथ ही साथ बॉलीवुड में कथक नृत्य की विशेष मुजरा शैली को प्रतिस्थापित करने का भी एक धन्यवाद देने का दृष्टिकोण था।

छत्तीसगढ़ के कलाकारों ने दी नृत्य- संगीत की अभिनव प्रस्तुतिकार्यक्रम के संयोजन में पहली बार विलुप्त होती मुजरा शैली का दृष्टिकोण खूबसूरती के साथ पेश किया गया। ज्ञात हो कि मुजरा शैली 19वीं शताब्दी में लखनऊ की जाने वाली एक खास शैली थी जिसमें नजाकत तहजीब और अदाओं का भरपूर इस्तेमाल था। नाट्यशास्त्र और अभिनय दर्पण के अतिरिक्त भी कुछ विशेषताएं रही जो मुजरा शैली को समृद्ध बनाती है। हिंदी साहित्य के साथ उर्दू साहित्य का भी कथक में प्रयोग मुजरा शैली का अपना एक अभिनव अंग रहा है। सूफियाना कलाम के साथ ही साथ गीत और ध्रुपद अंग और ख्याल शैली भी मुजरा शैली की अपनी एक विशेषता रही है। मुजरा शैली के संरक्षण और संवर्धन में किसी समय अंधकार युग के समय 19वीं शताब्दी में लखनऊ की तवायफ का बहुत बड़ा योगदान रहा है। श्री कला मंदिर कथक संस्थान अपने इस कार्यक्रम में उन्ही तवायफों को कला सहेजने के योगदान में एक नारी के दृष्टिकोण से सम्मानित करते हुए अपनी इस नृत्य रचना की प्रस्तुति समर्पित की।

इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के तकरीबन 33 से अधिक प्रतिष्ठित कलाकारों ने अपने नृत्य संरचना की प्रस्तुति दी जिसमें ध्रुपद चल गीत कव्वाली शेर गजल गीत और साथ ही साथ गायकी के सभी अंगों को शामिल किया गया। इस कार्यक्रम में छोटी सी नाटिका की प्रस्तुति दी गई।पहली बार इस अभिनव प्रयास में नृत्य के साथ-साथ नाटक का भी समावेश किया गया। इस कार्यक्रम में नृत्य और संगीत की प्रस्तुति के अलावा एक विजुअल डॉक्युमेंट्री का भी प्रयोग किया गया। तहजीब और संस्कृति में किस तरीके से संगीत जुड़ती गई और परिवर्तित होती गई यही इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण था।। शहर में पहली बार विजुअल ग्राफिक के माध्यम से इस विषय पर प्रस्तुति दी। संस्था के सचिव एवं पंडित बिरजू महाराज के शिष्य रितेश शर्मा ने इस कार्यक्रम की मूल रूप रेखा की जानकारी देते हुए मुजरा शैली की प्रस्तावना को तर्कों के साथ प्रस्तुत किया और साथ ही साथ उन्होंने नाट्य शास्त्र अभिनय दर्पण के प्रतिपादक से भी इस शैली के संबंध में अपनी बात कही।

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